DAY 3 – 15th April
Session 1
Siya Ram - Do Nahi, Ek
by Swami Advaitananda
सियाराम दो नहीं एक
वक्ता - स्वामी अद्वैतानन्द
चिन्मय मिशन मुंबई द्वारा आयोजित 'सियाराम फेस्टिवल' के तीसरे दिन, गुरुवार 15 अप्रैल के दिन, आदरणीय स्वामी अद्वैतानन्द जी ने विषय 'सियाराम दो नहीं एक' पर अपने भाव प्रकट करते हुए सम्बोधित किया।
श्रद्धये स्वामी अद्वैतानन्द जी बहुमुखी प्रतिभा से संपन्न हैं और वर्त्तमान में नासिक के चिन्मय मिशन में कार्यरत हैं। स्वामीजी का व्यक्तित्व प्रेम, दया, करुणा एवं साधु प्रवृत्ति से ओत प्रोत है। चिन्मय मिशन के विभिन्न क्षेत्रों में आपकी सेवा का असीम योगदान रहा है, जैसे इंदौर, इलाहबाद, कलकत्ता, संदीपनी साधनालय एवं चिन्मय विभूति। आप वेदों के ज्ञाता तो हैं ही साथ ही साथ संगीत मैं भी अत्यंत कुशल व निपुण हैं। आपके द्वारा बनायीं कुछ CD उपलब्ध हैं जिनमे सुरों व भक्ति का अद्भुत मेल है।
स्वामीजी ने सत्संग के आरम्भ में बताया कि अपने सनातन धर्म में अनेक धर्म ग्रन्थ उपलब्ध हैं और उन्ही धर्म ग्रंथों में एक है सबका प्रिय रामायण। रामायण शब्द का अर्थ होता है ‘रामस्य अयनम’ जो राम जी का घर है, इसलिए रामायण को पुस्तक मत कहिये, श्री सीताराम जी यहाँ पर साक्षात् विराजमान हैं।
स्वामीजी ने गोस्वामी तुलसी दस जी के कथन की उक्ति देते हुए कहा – 'बुध बिश्राम सकल जन रंजनि', अर्थात - रामकथा मनुष्यों को विश्राम देने वाली, सब को प्रसन्न करने वाली कथा है। उनहोंने बताया कि किस प्रकार राम रक्षा स्तोत्रम के उपक्रम में देवता के लिए कहा गया है 'श्री सीताराम चंद्रो देवता' अर्थात यहाँ पर यह पूर्णतः सिद्ध हो गया कि सीताराम पृथक नहीं, एक हैं।
अपने वक्तव्य में आगे स्वामीजी ने रामायण के दोहे की उपमा देते हुए कहा, कि किस प्रकार तुलसीदास जी ने सीताराम जी को एक बताया है,
गिरा अरथ जल बीचि सम कहिअत भिन्न न भिन्न।
बंदउँ सीता राम पद जिन्हहि परम प्रिय खिन्न॥
जो शब्द और उसके अर्थ तथा जल और जल की लहर के समान कहने में अलग-अलग हैं, परन्तु वास्तव में अभिन्न (एक) हैं, उन श्री सीतारामजी के चरणों की मैं वंदना करता हूँ।
आगे स्वामीजी ने बताया कि बाल कांड के मंगलाचरण में सीताराम दोनों के गुणों की चर्चा करते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी ने पुनः स्थापित किया है कि सियाराम का नित्य संयोग है।
सीतारामगुणग्रामपुण्यारण्यविहारिणौ।
वन्दे विशुद्धविज्ञानौ कवीश्वरकपीश्वरौ
इसका भावार्थ है कि श्री सीतारामजी रूपी पवित्र वन में विहार करने वाले, विशुद्ध विज्ञान सम्पन्न कवीश्वर श्री वाल्मीकिजी और कपीश्वर श्री हनुमानजी की मैं वन्दना करता हू। यह दोहा सीताराम के एक होने का पुष्टिकरण करता है।
स्वामीजी ने अत्यंत मधुर स्वर में रामायण कि पंक्तियाँ गाकर सुनते हुए बताया,
'सियाराम मय सब जग जानी करहुं प्रनाम जोरि जुग पानी’
अर्थात – पूरे संसार में श्री राम का निवास है, सबमें भगवान हैं और हम उनको हाथ जोड़कर प्रणाम करते हैं । आगे विवरण देते हुए स्वामीजी ने फिर से भरत जी के बारे में बताया,
'सीता राम चरण रति मोरे । अनु दिन बढ़उ अनुग्रह तोरे'
भरत जी कहते हैं कि शक्ति (सीता) और ब्रम्ह (राम) के प्रति उनका पूर्ण समर्पण हो और यह हर दिन निरंतर बढ़ता रहे ।
स्वामी अद्वैतानन्द जी ने आगे बहुत ही सुन्दर तर्क देते हुए कहा कि रामायण में सीता जी के अलग-अलग आयाम यानि कि उनके गुणों की विशेषताएं बताया है। उन्हें शक्ति कहा है और प्रभु श्री राम को उस शक्ति को धारण करने वाले शक्तिमान स्वरूप कहा गया है, इसलिए पुनः ये स्थापित होता है कि सीताराम एक हैं उनका अस्तित्व भिन्न नहीं है।
अगला अनुच्छेद देते हुए स्वामीजी ने मधुर गीत गाते हुए तुलसीदास जी के इस दोहे का वर्णन किया,
खेलति मम हृदये श्रीरामः
मोहमहार्णव-तारणकारी
रागद्वेष-मुखासुरमारी
शान्ति-विदेहसुता-सहचारी
इस दोहे में गोस्वामी जी ने बताया है कि भगवान राम अयोध्या रुपी ह्रदय में निवास करते हैं और सीताजी शांति स्वरूप है। आत्मा तत्त्व और शांति को भिन्न या अलग नहीं किया जा सकता, इसी प्रकार सियाराम एक ही हैं।
आगे स्वामी अद्वैतानन्द जी ने लौकिक दृष्टि से तर्क रखते हुए बताया कि सीता जी प्रभु राम की पत्नी अर्थात अर्धांगिनी हैं तो फिर वे उनसे अलग कैसे हो सकती हैं। उन दोनों का मन व संकल्प एक ही है और यह एकत्व त्याग समर्पण एवं प्रेम का प्रतीक है।
लसत मंजु मुनि मंडली मध्य सीय रघुचंदु।
ग्यान सभाँ जनु तनु धरें भगति सच्चिदानंदु
सुंदर मुनि मंडली के बीच में सीताजी और रघुकुलचंद्र श्री रामचन्द्रजी ऐसे सुशोभित हो रहे हैं मानो ज्ञान की सभा में साक्षात् भक्ति और सच्चिदानंद शरीर धारण करके विराजमान हैं ।
इस दोहे का वर्णन करते हुए स्वामीजी ने एक और दृष्टिकोण से राम और सीता जी के एकत्व का उदाहरण दिया उन्होंने कहा कि सीता माता उच्चतम भक्ति का रूप हैं और प्रभु राम भगवान हैं । भक्ति वृत्ति है जिसमें स्वयं भगवान बैठे हैं, तो भगवान के बिना भक्ति हो ही नहीं सकती, दोनों को अलग करना असंभव है।
स्वामी अद्वैतानन्द जी का वक्तव्य मधुर गंगा की लहार की तरह एक सुन्दर अनुभूति थी और उनहोंने इस गूढ़ सत्य वचन और तथ्य को पुनः हमें सरल रूप में समझाया, कि सियाराम दो नहीं एक हैं। जय सियाराम
Report by
Ragini Prasad
Chinmaya Prakash Zone
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DAY 3 - 15th April
Session 2
Sita - A Victim or a Victor?
by Swami Vimlananda
& Prof. Dr. Gauri Mahulikar
Satsang began with melodious bhajans singing the praises of Sri Rama and Sita. Smt. Anjali Dalal, trustee, Chinmaya Mission Mumbai welcomed Swami Swatmananda, speakers, committee members and viewers. Ankita Khanna danced to Invocations. Sindhuja Venkatraman sang two Invocations, dedicated to Ma Sita. Swamini Vimalananda, Chinmaya Gardens, Coimbatore and Prof. Dr. Gauri Mahulikar, Chinmaya Vishwa Vidyapeeth, Kerala, both very renowned in their respective fields, started their presentations.
Swaminiji said that Sage Valmiki and Sant Tulsidas prostrated to Sitaji not only as the consort of Sri Rama, but as Adi Shakti (Infinite Power). God is neither male nor female but comes on earth as an incarnation to establish Dharma, just like Rama did. Similarly, Sitaji chose her birth as a child of Mother Earth.
Sita was born to Janaka Maharaj, King of Mithila and had great upbringing, good education; lived a comfortable life. A Swayamvar was organized for her to select a suitable match. Sita was no ordinary girl. The suitor would have to be none other than the Lord himself. Lifting the bow was no ordinary feat. When Rama was exiled for fourteen years, it was her decision to accompany Him, to fulfill her duties. She was not one to be influenced by others’ opinions. She had a mind of her own and knew her actions would have consequences, which she was willing to take in her stride.
Sita was never a victim; she always made her own choices in life. Even after Ravana took her to Lanka, he could never touch her; for her, he was just another blade of grass, not worthy of her attention. Agni pariksha was yet another incident which she went through with a smile on her face. She knew Rama never doubted her purity. Banished from Ayodhya and sent to Valmiki’s ashram, she gave birth and raised Luv and Kush, lovingly singing the praises of Rama. Swaminiji concluded her talk, making us understand that even today, women have to prove themselves in life. But if this process is understood, then it makes her even stronger, able to accept and overcome challenges bravely, just like Sita, who was truly a victor.
Prof. Gauriji referred to Sita as strength personified. Throughout her talk, she spoke about Sita, referring to Valmiki Ramayana from Gita Press, Gorakhpur. Gauriji referred to Ahalya, Draupadi, Mandodari, Tara and Sita as uncommon women, subjected to various challenges in life, who fought against social norms and gained strength and recognition.. She described Sita as an optimist with firm convictions of her own. Her attributes are perseverance, forbearance, a forgiving nature and confidence in herself. Gauriji further described Sita as Mother India, an epitome of Vedic culture.
She is a combination of Sati and Shakti; purity and chastity incarnate. It was also brought to our attention how Sita told Rama that she would accompany Him to the forest and lead the way for Him to follow. Hanuman wanted to kill the wicked demonesses who harassed Sita, but she forgave them and convinced Hanuman not to kill them. Sita never allowed Ravana to come close to her. She went through the fire ordeal of her own choice, since she was convinced that a loyal and genuinely committed person could not be burnt by the fire of criticism. Gandhiji described Sita as a true Satyagrahi. She was a single parent to her twins. How could she be a victim? She was a true warrior of circumstance and a true victor.
Report by
Vandana Narang Lund
Chinmaya Prakash Zone